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June 21, 2011

Bhalu Hamle se Maut


जून के पहले सप्ताह में कोरिया जिले के सीमावर्ती इलाको में जिसमे प्रमुख रूप से नयी लेदरी नगर पंचायत के लोगो को भालू ने हमले से ३ लोगो को मार डाला था और ५ लोगो को घायल कर दिया था घायलों को उपचार के लिए सरकारी अस्पताल मनेन्द्रगढ़ में भारती कराया गया था, लेकिन वन विभाग के अल अफसरों की निष्क्रियता की वजह से घायलों में ११ वर्षीया विजेंद्र की मौत हो गयी.

आपको शायद लग रहा होगा की विजेंद्र की मौत का समय आ गया और उसकी मौत हो गयी लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है. विजेंद्र की जान बच सकती थी लेकिन वन विभाग के उदासीन रवैये के कारण सही उपचार न होने के कारण उसकी जान चली गयी, हद तो तब हो गयी मरणोपरांत पोस्टमार्टम के लिए उसके परिजनों को ४८ घंटो का इंतजार करना पड़ा. 
दिनांक १ जून को विजेंद्र अपने दादा के साथ जंगल में लकड़ी काटने गया था की अचानक दादा पर भालू ने हमला कर दिया, दादा पर हमला देख ११ वर्षीय विजेंद्र को रहा न गया और अपने दादा को बचाने के लिए भालू से भिड गया जिसमे विजेंद्र और उसके दादा गंभीर रूप से घायल हो गए. और उन्हें उपचार हेतु सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया, हालात में सुधार न होता देख सरकारी अस्पताल प्रबंधन द्वारा सिटीस्केन के लिए विजेंद्र को बिलासपुर रिफर किया गया, जिसमे वनविभाग द्वारा १ ड्राईवर और एक गार्ड को साथ में भेजा गया लेकिन मानवता को तारतार करते हुए दोनों वनविभाग के कर्मचारियों ने बिलासपुर एम्स हॉस्पिटल के दरवाजे पर छोड़ कर वापस चले गए साथ में ५ हजार रुपये उन्हें पकड़ा दिया गया. भोले भले पंडो जाती के लोगो ने शहर की चकाचौंध कभी नहीं देखी थी. २ दिन तक हॉस्पिटल में कागज लेकर घूमते रहे. अंत में १८०० रुपये लेकर अस्पताल प्रबंधन द्वारा विजेंद्र का एक्स- रे थमा दिया गया. विजेंद्र के परिजनों के पास वापस आने के शिवाये और कोई चारा नहीं था. इसलिए उन्होंने ४००० में मार्शल बुक कर वापस मनेन्द्रगढ़ ले आये. जिसकी सूचना सरकारी अस्पताल को दी गयी और सरकारी अस्पताल प्रंधन द्वारा वनविभाग को दी गयी. लेकिन फिर भी उसके इलाज के कोई कदम नहीं उठाया गया. अंततः १३ जून की शाम विजेंद्र ने दम तोड़ दिया.

विजेंद्र के चाचा द्वारा मौत की सूचना वनविभाग को प्रबंधन को दी गयी. लेकिन लगभग ३६ घंटो तक उसका शव उनके घर ही पड़ा रहा बाद में नगर पंचायत नयी लेदरी के अध्यक्ष को जानकारी मिली तो उन्होंने अपने खर्चे से पोस्ट मार्टम हेतु शव चीरघर भेजा.

इस सम्बन्ध में वन अधिकारीयों से जब पूछा गया तो उनका कहना था विजेंद्र और उनके दादा को जंगल जाना ही नहीं था. न जाते न उनको मौत होती साथ ही रेडक्रॉस सोसाईटी द्वारा उनको दवा उपलब्ध न कराये जाने पर उन्होंने कहा की वनविभाग की कोई गुड विल नहीं है की उधारी मिल सके. जबकि पूर्व में डी. ऍफ़. ओ मनेन्द्रगढ़ द्वारा कहा गया था की घायलों को समुचित उपचार दिया जावेगा और उनकी दवाइयों के रेड क्रोस सोसाईटी को कह दिया गया है सारी दवाइयां निःशुल्क उपलब्ध होंगी. वाही रेड क्रोस सोसाईटी के संचालक से जब हमने बात की तो उनका साफ़ तौर पर कहा था की किसी भी घायल को वनविभाग द्वारा दवैया मुहैया करने की बात नहीं की गयी है. और सारे घायल प्राइवेट दवाइया ले रहे हैं.

वाही उसके दादा की हालत भी गंभीर बनी हुई है, कभी भी कोई भी प्रत्याशित घटना हो सकती है. अगर वनविभाग अपनी कुम्भ करणीय नींद से नहीं जगा तो शायद दादा की भी मौत हो सकती है. हांलाकि वनविभाग द्वारा विजेंद्र की मौत के लिए २ लाख रुपये देने की बात कही गयी है.

(सहारा समय)

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